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ग़ज़ल
ठहर ऐ मौज-ए-शोर-आगीं-ओ-शोर-अंगेज़-ओ-शोर-अफ़ज़ा
अभी इक बात कहनी है मुझे यारान-ए-साहिल से
शाहिद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मुझे सहल हो गईं मंज़िलें वो हवा के रुख़ भी बदल गए
तिरा हाथ हाथ में आ गया कि चराग़ राह में जल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मुझे सहल हो गईं मंज़िलें वो हवा के रुख़ भी बदल गए
तिरा हाथ हाथ में आ गया कि चराग़ राह में जल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हर ज़र्रा गुल-फ़िशाँ है नज़र चूर चूर है
निकले हैं मय-कदे से तो चेहरे पे नूर है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में
रहा करती है शादाबी ख़िज़ाँ के भी महीनों में
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
बहुत हस्सास-ओ-नाज़ुक आबगीने वाला मैं तन्हा
शराबें फेंक कर ज़हराब पीने वाला मैं तन्हा
इशरत क़ादरी
ग़ज़ल
ज़ेर-ए-नक़ाब आब-गूँ हाए-रे उन की जालियाँ
हम को तो बस डुबो गईं नील के कटरे वालियाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक
रहेगा पीर ये कब तक रहोगे तुम जवाँ कब तक